दरवाज़े की ओट से झाँक रहा कोई,
क्यूँ मुझसे अपना गम बाँट रहा कोई,
आँखों के परदे जबकि गिरा दिए हैं मैंने,
क्यूँ सपनो में आकर रुला रहा कोई,
जब हैरान हूँ मैं खुद की परेशानियों से,
क्यूँ मुझसे अपना गम बाँट रहा कोई.
दरवाज़े की ओट से झाँक रहा कोई,
जानता हूँ कोई अपना नहीं दूर दूर तक यहाँ,
फिर भी लगता प्यार से बुला रहा कोई,
खुद वैशाखियों के सहारे ज़िन्दगी बितायी है मैंने,
क्यूँ एक अपाहिज से सहारा मांग रहा कोई,
दरवाज़े की ओट से झाँक रहा कोई,
क्यूँ मुझसे अपना गम बाँट रहा कोई...........
gud work
ReplyDeletethankz pj.....
ReplyDeletehey, it's a nice work dude......
ReplyDeletekeep writing.....
hey nice to see u here.....
ReplyDeleteawesome poems yaar....
kabhi bataya nahi......
mast poem hai bhai......tu to bhut bada kavi ban gya re
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